आजकल जिधर देखो आईपीएल की धूम है और साथ में घूम है चियर गर्ल्स की। जो लोग थोड़ा बहुत लाज शर्म के बारे में सोचते हैं शायद वो तो मैच देखने नहीं जाते होंगे, खासकर बच्चों के साथ तो कभी नहीं। जी हाँ, जरा सोचिए कि आप बच्चों को मैच दिखाने के लिए स्टेडियम में हैं और कोई चियर गर्ल आप और आपके बच्चों के सामने कुल्हे मटकाने लगे वह भी अर्ध-नग्न अवस्था में, तो आपको कैसा लगेगा?
तो बच्चों को उनकी खासियत बताएँगे या आंटी को नमस्ते कराएँगे!
अगर ये नंगा नाच सरे आम हो सकता है तो बेचारी बार गर्ल्स को क्यों कोसा जाता, कम से कम वो चार दिवारी में तो होती हैं, वहाँ पर क्या होता है सबको पहले से पता होता है।
अगर इसी तरह हम पाश्चात्य सभ्यता का पीछा करते रहे तो एक दिल ऐसा आएगा कि सभी परिवार के लोग साथ बैठकर अभद्र फ़िल्में देखेंगे।
इस खेल को देखकर लगता है कि लोगों को पैसे कमाने से मतलब है चाहे वो कैसे भी कमाया जाए, हमारी आने वाली पीढी पर क्या असर पड़ेगा उन्हे असर नही पड़ता!
जहाँ तक मैं समझता हूँ, तो बार गर्ल्स इन चियर गर्ल्स से लाख गुणा बेहतर हैं।
आपका क्या मानना है...
तो बच्चों को उनकी खासियत बताएँगे या आंटी को नमस्ते कराएँगे!
अगर ये नंगा नाच सरे आम हो सकता है तो बेचारी बार गर्ल्स को क्यों कोसा जाता, कम से कम वो चार दिवारी में तो होती हैं, वहाँ पर क्या होता है सबको पहले से पता होता है।
अगर इसी तरह हम पाश्चात्य सभ्यता का पीछा करते रहे तो एक दिल ऐसा आएगा कि सभी परिवार के लोग साथ बैठकर अभद्र फ़िल्में देखेंगे।
इस खेल को देखकर लगता है कि लोगों को पैसे कमाने से मतलब है चाहे वो कैसे भी कमाया जाए, हमारी आने वाली पीढी पर क्या असर पड़ेगा उन्हे असर नही पड़ता!
जहाँ तक मैं समझता हूँ, तो बार गर्ल्स इन चियर गर्ल्स से लाख गुणा बेहतर हैं।
आपका क्या मानना है...
1 टिप्पणी:
मेरे विचार में तो दोनों ही ग़लत हैं. नारी सौन्दर्य की ऐसी अभद्र सार्वजनिक नुमायश जिस्समाज में होती है उसका पतन निश्चित है.
बैसे यह आई पी एल क्या है?
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