शनिवार, 31 मई 2008

काश कैटरीना ने भी दी होती जादू की झप्पी...

आप सब लोग आई पी एल के बारे में जानते होंगे, क्योंकि आजकल उसी की धूम है। प्रीती जिंटा का जोश तो आपने देखा ही होगा। जब उसकी टीम मैच हार रही थी, तो शायद उसे बालीबुड की फिल्म मुन्नाभाई एम बी बी एस याद आ गयी, बस फिर क्या था जो भी प्लेयर थोड़ा सा ढीला पड़ा, प्रीती पहुंच गयी जादू की झप्पी देने। यह जादू की झप्पी तो सचमुच जादू कर गयी, एक दम बूस्टर हो गयी....!
ऐसे में मुझे बेचारे राहुल द्रविड़ की याद आ रही है, काश कैटरीना ने भी राहुल को जादू की झप्पी दी होती तो शायद फाइनल मैच युवराज और राहुल के बीच होता...!
खैर भई हम तो कुछ नहीं कर सकते बस प्रीती को जादू की झप्पी देते देख सकते हैं तो देखिए कुछ फोटो कैसे दी जाती है जादू की झप्पी...





सोमवार, 5 मई 2008

अपने ब्लॉग की पुरानी पोस्ट को रफ़्तार सर्च बार से खोजें...

रफ़्तार हिन्दी सर्च इंजन के बारे में तो आप सब ब्लॉगर जानते ही होंगे, इसलिए मैं रफ़्तार का परिचय न देकर आपको इसकी एक अन्य उपलब्धी और ब्लॉगर की आवश्यकता के बारे में बताना चाहूँगा।

हम ब्लॉगर हिन्दी में ब्लॉग लिखते हैं, और जैसे-2 हमारे ब्लॉग पे पोस्ट बढ़ती जाती हैं, पुरानी पोस्ट छुप जाती हैं, क्योंकि उनकी जगह नई पोस्ट ले लेती हैं।

अगर कोई हमारे ब्लॉग पर आता है तो उसे पुरानी पोस्ट नहीं दिखाई देती। इस समस्या के लिए कोई तरिका हो जिस्से पुरानी पोस्ट खोजी जा सके।

रफ़्तार ने इस समस्या का हल निकाला है - रफ़्तार सर्च बार
जी हाँ, रफ़्तार ने एक सर्च बार बनाया है जिसे आप आसानी से अपने ब्लाग में लगा सकते हैं, और एक खास बात है कि इसमें आप आसानी से हिन्दी भी टाइप कर सकते हैं।

यह दूसरे सर्च बारों (google, guruji, yahoo, msn) से काफी अल्ग दिखा है। क्योंकि दूसरे सर्च बार में हिन्दी टाइप करने में मुझे बड़ी दिक्कत महशूस हुई, शायद आपको भी हुई होगी।

तो देर किस बात की रफ़्तार सर्च बार अपने ब्लॉग पर लगाएँ और पुरानी पोस्ट सर्च कराएँ।
रफ़्तार सर्च बार का लिंक यह रहा...

शनिवार, 3 मई 2008

चीयर गर्ल्स सही या बार गर्ल्स ?


आजकल जिधर देखो आईपीएल की धूम है और साथ में घूम है चियर गर्ल्स की। जो लोग थोड़ा बहुत लाज शर्म के बारे में सोचते हैं शायद वो तो मैच देखने नहीं जाते होंगे, खासकर बच्चों के साथ तो कभी नहीं। जी हाँ, जरा सोचिए कि आप बच्चों को मैच दिखाने के लिए स्टेडियम में हैं और कोई चियर गर्ल आप और आपके बच्चों के सामने कुल्हे मटकाने लगे वह भी अर्ध-नग्न अवस्था में, तो आपको कैसा लगेगा?
तो बच्चों को उनकी खासियत बताएँगे या आंटी को नमस्ते कराएँगे!
अगर ये नंगा नाच सरे आम हो सकता है तो बेचारी बार गर्ल्स को क्यों कोसा जाता, कम से कम वो चार दिवारी में तो होती हैं, वहाँ पर क्या होता है सबको पहले से पता होता है।
अगर इसी तरह हम पाश्चात्य सभ्यता का पीछा करते रहे तो एक दिल ऐसा आएगा कि सभी परिवार के लोग साथ बैठकर अभद्र फ़िल्में देखेंगे।
इस खेल को देखकर लगता है कि लोगों को पैसे कमाने से मतलब है चाहे वो कैसे भी कमाया जाए, हमारी आने वाली पीढी पर क्या असर पड़ेगा उन्हे असर नही पड़ता!
जहाँ तक मैं समझता हूँ, तो बार गर्ल्स इन चियर गर्ल्स से लाख गुणा बेहतर हैं।
आपका क्या मानना है...