मंगलवार, 15 अप्रैल 2008

मंदिर, जहां के इष्ट देवता हैं दुर्योधन

आज जागरण की साइट देख रहा था कि अचानक एक मनोरंजक खबर देखने को मिली, शायद आपको भी पसंद आए...

तिरुवनंतपुरम। पूजा-अर्चना और विश्वास के भी विचित्र कायदे होते हैं। केरल के कोल्लम जिले के पोरुवाझी मंदिर में भारतीय महाकाव्य महाभारत के 'खलनायक' दुर्योधन इष्ट देवता हैं।
दलित मंदिर होने के बावजूद यहां हिंदुओं के सभी वर्गो के लोग पूजा करने आते हैं। मंदिर ने वैसे तो हिंदुओं के मुख्यधारा के कई रिवाज वर्षो से अपना रखे हैं, लेकिन पूजा और अन्य कर्मकांड अब भी दलित कौरव समुदाय के लोगों द्वारा ही किए जाते हैं। आदिवासी परंपरा को कायम रखने के लिए यहां भगवान को ताड़ी, मुर्गा आदि चढ़ाया जाता है। मंदिर के उत्ताराधिकारी मानते हैं कि यह जगह दुर्योधन की यात्रा के बाद ही पवित्र हुआ था। दलित उन्हें 'मलानदा अपोपन' या पर्वतों के देवता मानते हैं।
केरल के मंदिरों की अच्छी जानकारी रखने वाले प्रो. एमजी शशिभूषण ने कहा कि मूल रूप से इस जगह पर कौरव समुदाय के लोग अपने पूर्वजों की पूजा करते होंगे, जिसे बाद में स्थानीय समुदाय के सभी लोगों ने भी अपना लिया होगा। ऐसे कई मंदिर हैं, जहां इस तरह की पौराणिक परंपराएं अभी भी प्रचलित हैं। उन्होंने कहा कि महाभारत में दुर्योधन के निर्देश पर पांडवों के लिए लाक्षागृह बनाने वाले मलयन कौरव समुदाय के पूर्वज थे।
शास्त्रों के अनुसार खलनायक माने जाने वाले चरित्र की पूजा करने के पीछे के तर्क पर शशिभूषण ने कहा कि धर्म व विश्वास के विषय में कभी-कभी व्याख्या करना काफी मुश्किल होता है। मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है, वहां सिर्फ ग्रेनाइट का एक चबूतरा है जहां दुर्योधन की उपस्थिति मानकर पूजा की जाती है। मंदिर में भगवान गणेश व दूसरे देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित हैं, लेकिन दुर्योधन की पूजा के बाद ही इन देवताओं की पूजा की जाती है।

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

महाभारत में तो एक दुर्योधन थे. आज के भारत में तो दुर्योधनों की गिनती करना ही मुश्किल है. मुझे लगता है मन्दिर मैं पत्थर पर दुर्योधन की मूर्ति रही होगी जो वहाँ से निकल कर सड़कों पर अनेकानेक रूपों में घूम रही है.