आजकल हरियाणा में जमिनों के भाव आसमान छू रहे हैं, क्या यह औद्योगिक क्रान्ति हमारे कृ्षि प्रधान देश के हित में है़।
अगर सभी लोग उद्योगों के पिछे भागेंगे तो एक दिन ऐसा आएगा कि खेती के लायक जमीन बचेगी ही नही। फिर गेहूँ की जगह मसीनें पैदा होंगी, जरा सोचीए क्या इन मसीनों से हम अपना पेट भर पाऐंगे।
जहाँ तक मेरा ख्याल है हमारी सरकार को कृ्षि का औद्योगिकरण करने की सोचनी चाहिए ना कि खालिश औद्योगिकरण...
और किसानों को कहना चाहूँगा कि आप दुनिया का पेट भरने वाले हैं, कहीं ऐसा ना हो कि आपको अपने पेट के लिए दुसरों का मुँह ताकना पड़े।
इसलिए निवेदन है कि अपनी जमीन को अपने पास रखिए बेचने की सोचिए भी मत... और यह मत भुलिए की धरती को हमारे पुर्वज अपनी माता का स्थान देते थे।
तो आज ही से प्रण करिए कि आप अपनी माँ को नहीं बेचेंगे....
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