शुक्रवार, 14 नवंबर 2008

अभी मानवता बची है...

आज सुबह जब मैं ट्रैन से तिलकब्रिज (नई दिल्ली) रेलवे स्टेशन पर उतरा तो एक जगह बहुत भीड़ देखी। जब मैं भीड़ के पास पहुंचा तो देखा कि भीड़ के बीच में एक आदमी लहु-लुहान हुआ बैठा है, बाकि भीड़ की तरह मैने भी उस पर एक नजर डाली और बगल खड़े लोगों से पुछने लगा कि क्या हुआ इसे। पता चला कि बेचारा ट्रेन से गिर गया है। तभी प्लेटफार्म से दूर खड़ी एक पुलिस की जीप में बैठे पुलिस वाले की आवाज आई कि - अबे इधर आ जा चल तुझे अस्पताल ले चलता हूँ, उस टुटे-फुटे आदमी ने खड़े होने कि कोशिश की लेकिन बेचारा उठ नहीं पाया।

तब भीड़ से किसी ने कहा कि अरे इसका हाथ पकड़ कर जीप तक पहुँचा दो, लेकिन कोई उसको छुने को तैयार नहीं था, और ना ही पुलिस वाला उसके पास आ रहा है...

तभी भीड़ से एक आदमी आया और उसे अपनी बाहों में उठा चल दिया पुलिस जीप की तरफ। उसके इस काम को देखकर सभी लोग हैरान थे, लेकिन मैं नहीं, क्योंकि...

मैं जानता था कि उस आदमी को जीप तक पहुँचाने वाला, हरियाणा का रहने वाला था।

हरियाणा की केवल बोली ही लठमार है, वहाँ के आदमी बहुत नरम दिल होते हैं।

तो क्या कहते हैं मानवता बची है ना....?

2 टिप्‍पणियां:

विनीत खरे ने कहा…

"उस भारतवासी को विनीत खरे का सलाम! ", आनंद जी, मुझे यह जानकर आश्चर्य नहीं हुआ "की यह काम किसी हरियाणावासी ने किया". मुझे यह लगता है की यह काम कोई भी भारतवासी कर सकता है लेकिन आजकल मानवता मिलना थोड़ा मुश्किल है.

बेनामी ने कहा…

Good initiative regarding
I appreciate it